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A full essay on "Talent-Migration" in hindi - प्रतिभा-प्रवासन एक विकट समस्या?

इस पोस्ट में Talent-Migration (प्रतिभा-प्रवासन एक विकट समस्या) पर हिंदी निबंध (hindi essay) पढने को मिलेगा तो चलिए शुरू करते हैं? आपको किसी भी देश के शिक्षित नौकरीपैशा वर्ग जैसे DOCTOR, ENGINEER और SCIENTIST आदि के प्रतिभाशाली लोगो का बेहतर सुविधा मिलने पर किसी दुसरे देश में चले जाना ही प्रतिभा का पलायन कहा जाता है ! किसी भी विकसित या विकाशसील देश में प्रतिभाशाली लोगो का होना उस देश की आर्थिक प्रगति के लिए अत्यन्य आवश्यक है ! प्रतिभा का पलायन होने की समस्या वर्तमान में भारत जैसे देश में भी पैर पसार रही है और इसके महत्वपूर्ण कारण है-resources की कमी, जरूरी सुविधओं का अभाव होना, सरकार की तरफ से की जाने वाली उपेक्षा -आदि !सरकार की तरफ से की जाने वाली यह उपेक्षा इंदिरा गाँधी के कार्यकाल से लेकर वर्तमान तक किसी न किसी रूप में विधमान रही है ! जहा एक और यहाँ की सरकारे संसाधन और बजट की कमी बताकर इस समस्या की गंभीरता को लगातार बढ़ाए चली जा रही है वही दूसरी और विदेशी आर्थिक स्थिती से संपन्न सरकारे विशेष package के नाम पर लगातार इन्हें अपनी और आकर्षित कर रही है.



Indian Example of Talent-Migration?

हरगोविंद खुराना का उदाहरण भी इन्ही में से एक है !1968 में नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित होने के बाद डा. खुराना काफी प्रयास करके भी नौकरी न पा सके और अंततः उन्हें अपने अनुसंधान के लिए पहले England फिर Canada जाना पड़ा ! आखिर उन्हें America की नागरिकता लेनी ही पड़ी ! ठीक इसी प्रकार भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ डा वशिष्ठ नारायण सिंह भी इसी स्तिथि का शिकार बने और अपना मानसिक संतुलन खोकर भिखारी के रूप में गली-गली घूमना पड़ा ! आज भी डा सिंह का भारत सरकार पर यह एक तरह का दाग ही है ! शायद अमेरिका में उन्हें ऐसी परिस्थितित्या नहीं देखनी पड़ती ! ऐसी महान हस्तियों की ऐसी दुर्दशा देखकर अन्य भारतीय प्रतिभाये भी पलायन की और अग्रसर होती है और हमे इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहियें ! गहराई से विवेचना करे तो हमे एक के बाद एक कई ऐसे उदहारण देखने को मिलेंगे जैसे-गामा पहलवान को हलवाई की दूकान चलाकर अपना जीवन-यापन करना पड़ा, एक भारोतोलक को बोकारो के स्टील प्लांट में अपना जीवन यापन करना पड़ा ! एक अन्य प्रासंगिक उदाहरण देखिये की- भारत के प्रसिद्ध शतरंज खिलाडी विश्वनाथन आनंद को अपने खर्चे पर अमेरिका में रहना पड़ा और सरकार ने उनके रुकने तक की व्यवस्था नहीं की ! हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की अंतिम अवस्था कष्टदायक थी, अश्क-जैसे साहित्यकार ने परचून की दूकान चलाई.

Unprofessional: Education System?

इसका प्रमुख कारण हमारी शिक्षा व्यव्स्था की अनियमितता, अराजकता -आदि है ! एक सर्वे के अनुसार आज भी अमेरिका में स्थानीय doctor की संख्या से अधिक भारतीय doctor है ! ऐसा नहीं है की वर्तमान प्रतिभाओ में देशभक्ति का अभाव है डा. अब्दुल कलाम को अमरीकी सुविधाओ ने अपनी और नहीं खीचा और वे अपनी काबिलियत के दम पर यही भारत में ही मिसाइलमैन बने, इसी तरह मेजर ध्यानचंद ने भी हिटलर का प्रस्ताव ठुकराया था ! ऐसा नहीं है की इस समस्या के पीछे सारे नैतिक कारण ही है और न ही हमारे शिक्षा प्रणाली में कोई विशेष परिवर्तन आये है! इस तरह गहराई से विचारने पर ये सब तर्क हमे अनावश्यक ही प्रतीत होते है.

Migration of Civil Service Talent?

सिविल सेवाओ में भी प्रतिभा का पलायन एक महत्वपूर्ण विषय है ! UNCTAD की एक ताजा रिपोर्ट बताती है की एक भारतीय Engineer का खर्चा 55000 डॉलर है जो की भारत जैसे विकाशशील देश के लिए बहुत ज्यादा है सिविल सेवा के अधिकारियो में इन डॉक्टर और इंजिनियर की संख्या लगातार बढती जा रही है जिससे इनके क्षेत्र में इस प्रतिभा की लगातार कमी होती जा रही है! डिग्रीधारियो के प्रशासन में जाने से देश को दोहरी मार पड़ रही है ! इस तरह एक और इनकी शिक्षा में बहुत ज्यादा पैसा लगता है तो दूसरी और इनकी प्रतिभा का उचित उपयोग भी नहीं हो पाता है !

सारे आकडे देखे जाए तो एक बात बिलकुल साफ़ है की पलायन के पीछे छुपा हुआ मूल कारण विवशता ही है ! सामान्यतया प्रतिभाये अपने उज्जवल भविष्य को देखते हुए पलायन को विवश होती है ! अन्य समस्यों की तरह यह भी भारत की एक ज्वलंत समस्या है जिसका जल्दी ही निराकरण किया जाना आवश्यक है ! इसके लिए यहाँ की सरकारों को वो सभी सुविधाएँ इन प्रतिभाओ को देनी पड़ेंगी जो इन्हें विदेशो में वर्तमान में मिल रही है, आरक्षण आदि की कुरीति का त्याग करना पड़ेगा, भेदभाव भुलाकर योग्यता को प्राथमिकता देनी पड़ेगी ! अन्यथा भारत को सर्वोच्चता के शिखर पर ले जाने का यह स्वप्न केवल दिवा स्वप्न ही बनकर रह जायेगा.

 

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