हेल्लो दोस्त, इस पोस्ट में आपको, Mahatma Gandhi जी की Biography, Jivani, Essay (hindi) या युग पुरुष महात्मा गाँधी जी के जीवन पर निबंध उपलब्ध करवाया गया है तो चलिए उनके बारे जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं.
who is mahatma gandhi - महात्मा गाँधी कौन थे?
education of mahatma gandhi - मोहनदास की शैक्षिण सफर?
मोहनदास बचपन से ही कुसाल बुद्धि के बच्चे रहे थे ! गाँधी की आन्तरिक इच्छा डॉक्टर बनने की थी किन्तु पैतृक पेशा दीवानगिरी के लिए उन्हें बेरिस्टर बनने के लिए प्रेरित किया गया ! अपने शैक्षिण व्यवस्था के दौरान इंगलैंड में प्रवास पर गए ! वह उन्होंने शिक्षा के दौरान शिक्षा ग्रहण करते हुए मांस-मदिरा तथा सुन्दरियों के मोहपाश से विलग रहे ! बैरिस्टर बनने के बाद गाँधी परिवर्तन हुआ था?
इंग्लैंड से वापस लौटते समय तक गाँधीजी भाषण देना नै जानते थे ,पर विदाई बेला में कुछ बोलना था ही गाँधी के दिमाग में एडिसनकी घटना आई ! एडिसन को “हाउस ऑफ़ कॉमन्स” में बोलना था ! वे खड़े होकर ‘ आई कंसीव, आई कंसीव, आई कंसीव’ तिन बार बोल के बैठ गए ! अंग्रेजी में कंसीव का अर्थ” मेरी धारणा है “ के अतिरिक्त “ गर्भ ठहरना” भी होता है ! बस फिर क्या था एक सिरफिरे ने एडिसन की इस दशा पर छींटा-कशी कर ही दी –‘इस सज्जन ने तीन बार गर्भ धारण किया मगर जना कुछ भी नहीं’ हाउस में जोरदार ठहाके लगे ! गाँधी ने इसी घटना का उल्लेख क्र भाषण शुरू करके अपनी कमजोरी छिपाने का मन तो बना लिया पर खड़े होकर बोलने का साहस नहीं जुटा पाए ! ‘धन्यवाद’ कहकर बैठ गए , लेकिन आगे चलकर गाँधी मानव उत्थान के लिए शांति का सन्देश देने में कितने निपुण सिद्ध हुए.
मोहनदास से महात्मा गांधी का सफ़र?
इतिहास साक्षी है कि शांति और अहिंसात्मक तरीको को अपना हक़ और न्याय प्राप्त करने करने का सबल अस्त्र मानने वाले गाँधी ने इस अमोध अस्त्रों से उस ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति को पस्त कर दिया , जिसके साम्राज्य में सूर्य नहीं डूबता था.
महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ्रीका प्रवास पर यदि हम एक विहंगम द्र्ष्टी डाले तो एक साधारण से व्यक्ति के रूप में पहुचे गाँधी ने 22वर्ष की लम्बी लड़ाई में अपना ,भूख मानसिक संताप व शारीरिक यातनाएझेलते हुए न केवल राजनितिक,बल्कि नैतिकक्षेत्रों में जो उपलब्धियां प्राप्त की, उसकी मिसाल अन्यत्र मिलना असम्भव है.
गाँधी जी की आजीवन यही मान्यता रही की अपनी तपस्या के बल से ही दुसरे का ह्रदय परिवर्तन किया जा सकता है ! गाँधी की स्पष्ट निति थी की वे दुसरे को पराजित करके स्वयं विजयी नहीं बनते है ,बल्कि उनको प्रभावित करके उनको अपना बना लेते थे.
सन् 1919 से लेकर 1948 में अपनी मृत्यु तक भारत की स्वाधीनता आन्दोलन के महान ऐतिहासिक नाटक में गाँधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है ! उनका जीवन उनके शब्दो से भी बड़ा था चूँकिउनका आचरण विचारो से महान था और उनकी जीवन प्रकिया तर्क से अधिक सृजनात्मक थी.
गाँधी जी की भक्त अंग्रेज महिला मेडेलिन स्लेड जो मीरा बहन के नाम से विख्यात हुई ,लिखती है ,”मैंने जैसे ही साबरमती आश्रममें प्रवेश किया टो एक गेहूवर्णीय प्रकाश पुंज मेरे समक्ष उभरा और मेरे मस्तिक पर छा गया “? गाँधी जी के प्रति लोगो में ऐसी ही पावन आस्था थी ! डांडी यात्रा में लगातार 24 दिनों तक पैदल चल कर समुन्द्र के पानी को सुखाकर बनाया हुआ थोडा सा नमक उठा लेने की बात , वायसराय को नाटकीय और मूर्खतापूर्ण लगी होगी ! नमक कानून के उल्लंघन की यह प्रतीकात्मक घटना जनस्फुर्ती के लिए रामबाण सिद्ध हुई ! 29 जनवरी को गाँधी ने अपनी भतीजी पुत्री मनु से कहा था ,”यदि किसी ने मुझ पर गोली चला दी और मैंने उसे अपनी छाती पर झेलते हुए होठो से राम का नाम ले लिया तो मुझे सच्चा महात्मा कहना? ” और यह कैसा सयोंग था कि 30 जनवरी को उस महात्मा को मनवांछित मृत्यु प्राप्त हो गई? संवेदित स्वरों में लार्ड माउन्टबैटन ने ठीक ही कहा था, “ सारा संसार उनके जीवित रहने से संपन्न था और उनके निधन से वह दरिद्र हो गया है”.